प्रगति के पथ पर


क्यु डरता है इन्सान ?
किससे डरता है इन्सान ?
धरती माँ है न उसके साथ 
घास  की भीनी - भीनी सुगंध 
पत्थरों की शीतलता 
मिट्टी की शक्ति ...
सिर्फ महसूस करने की देर है |
चारों तरफ पहाड़ियाँ ,
बर्फानी पहाड़ हाथ फैलाये 
उसके दीदार के लिए  खड़े हैं |
फूलों की डालियाँ हरदम 
झुकने को तैयार खड़ी हैं |
पक्षी को देखो तो 
चहचहाने के लिए बेताब है |
कहाँ अकेला है इन्सान ? 
सारी प्रकृति तो उसके दीदार में 
आँखें बिछाये खड़ी है |
फिर क्यु अंधकार को 
निहारना ?
क्यु थककर बैठ जाना |
क्युकी जो ईश्वर में है 
वही सब तो है उसमें  |    

6 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ek insaan mati ka putla...ya to kisi se nahi darta...ya fir ek parinde se bhi kanpne lagta hai..!

waise uss prakriti se to darega hi ...jisko wo tahas nahas kar raha hai...!

ek shandaar rachna..!

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

बिल्कुल ठीक कहा आपने

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Rakesh Kumar ने कहा…

आपके ब्लॉग पर पहली दफा आना हुआ.आपकी शानदार भावपूर्ण, ईश्वर और प्रकृति में विश्वास दिलाती अभिव्यक्ति को सादर प्रणाम.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आपका हार्दिक स्वागत है.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

gahre ehsaas

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बिल्कुल ठीक कहा आपने

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

आपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं। बहुत ही भावपूर्ण रचना पढ़ने को मिली।