उसकी आहें बहुत से सवाल करती हैं |
चलती तो है राहबर संग
पर खुद के जवाब से अनजान रहती है |
मौन पहेली की तरह आती है ,
और सृजन करके चली जाती है |
अपने सवालों का जवाब वो ताउम्र ...
न ढूंड पाती है |
खुद के दर्द को समेटकर
सबके चेहरे में ख़ुशी लाती है |
सुन्दर संस्कारों और अच्छे आचरण
बच्चों में भर कर सबका घर सजाती है |
पर अपनी चाहत किसी से न कह पाती है |
वो दबी - दबी सी आह
बस सुलगती ही रह जाती है |
फिर आसुओं में उन्हें बहाकर
वो खुदको सुकून दिलाती है |
प्यार तो सब करते हैं उसे ...
पर एहसास देने से कतराते हैं |
अपने बेमतलब के अहम् की खातिर
आपस के प्यार को न समझ पाते हैं |
शायद ये सब उपर वाले की माया है |
अरे हम भी तो ऐसे ही कह रहे हैं ,
ये तो चलती - फिरती रचना का साया है |
17 टिप्पणियां:
bahut behtreen , shaandar
अपने बेमतलब के अहम् की खातिर
आपस के प्यार को न समझ पाते हैं |
कविता के माध्यम से बहुत सही बात कही है आपने.
सादर
टुकुर टुकुर निहारती ,घर बुहारती ,सबको संवारती ,उपेक्षित शमिता की व्यथा है ये ,न की कथा है ये .
bhut hi bhaavpur aur behtreen rachna...
bahut sunder bhav liye shaandaar abhibyakti.bahut hi sunder shabdon main likhi saarthak rachanaa.badhaai.
मनोदशा का सजीव चित्रण आपकी चिर परचित शैली में , क्या कहू कहने को शब्द नहीं. बेहद प्रभावशाली रचना
जीवन के सत्य को उकेरती बहुत सशक्त प्रस्तुति..आभार
अहम् हटाकर प्रेम समझना होगा।
अहं दिलों के दरम्यान दीवार खड़ा कर देता है।
वो दबी - दबी सी आह
बस सुलगती ही रह जाती है |
फिर आसुओं में उन्हें बहाकर
वो खुदको सुकून दिलाती है |
प्यार तो सब करते हैं उसे ...
पर एहसास देने से कतराते हैं |
अपने बेमतलब के अहम् की खाति
sunder panktiyan
saader
rachana
आदरणीया मीनाक्षी जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
वो दबी - दबी सी आह
बस सुलगती ही रह जाती है …
फिर आसुओं में उन्हें बहाकर वो खुदको सुकून दिलाती है …
दर्द के दर्द की अच्छी तर्ज़ुमानी की है आपने
आभार !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कृपया ,
शस्वरं
पर आप सब अवश्य visit करें … और मेरे ब्लॉग के लिए दुआ भी … :)
शस्वरं कल दोपहर बाद से गायब था …
हालांकि आज सवेरे से पुनः नज़र आने लगा है …
लेकिन आज भी बार-बार मेरा ब्लॉग गायब हो'कर उसके स्थान पर कोई अन्य ब्लॉग रिडायरेक्ट हो'कर खुलने लग जाता है …
कोई इस समस्या का उपाय बता सकें तो आभारी रहूंगा ।
| वो दबी - दबी सी आह बस सुलगती ही रह जाती है | फिर आसुओं में उन्हें बहाकर वो खुदको सुकून दिलाती है | प्यार तो सब करते हैं उसे ... पर एहसास देने से कतराते हैं |
Bahut umda rachna Minakshi ji...bachhon mein achhe samskar aur aacharan bharne ki aaj bahut zaroorat hai...
aur pyar ke beech 'aham' shayad ek deewar hai jo khud ko bhi aaaina nahi dikhane deta...
क्या बात है, बहुत सुंदर रचना है
मन के भावो कि अच्छी प्रस्तुति
बहुत भावपूर्ण....
सुन्दर अभिव्यक्ति भावनात्मक कविता वाह
बेहद उत्कृष्ट रचना है यह. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
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