''लोकतान्त्रिक देश ''


          
भावना हो तो कोई भावनाओं  की कदर करेगा |
निराशा में  बड़ने वाले क़दमों  को रोक सकेगा |
मेहनतकश हाथो को चूमेगा... 
मासूमो को फाँसी मै चड़ने से रोक सकेगा |
दुल्हन को प्यार और सम्मान दे कर ...
उसे घर की चोखट  पर प्यार से बसने देकर ,
घर की देहलीज़ को फिर वो रौशन करेगा |
 दुसरो की सुनकर फिर वो अपनी कहेगा |
सही और गलत का वो इंसाफ करेगा |
अपने देश की ज़मी को फिर से  गुलज़ार करके ,
जर्रे जर्रे में  वो रौशन उसका नाम करेगा |
इन्सान के दिल में देश के लिए प्यार भरेगा |
सबको आपस मिलकर जीने को कहेगा |
मूलक को मूलक से जोड़ने का काम करके ,
देश का वो  लोकतान्त्रिक नाम रखेगा |

6 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

राष्ट्रीय एकता और प्रेमभाव की सुन्दर रचना .....
ईश्वर करे ऐसा ही हो .....

ashish ने कहा…

सौहाद्र की तरफ इंगित करती रचना . आभार सामाजिक

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ektaa ki bhavna se likhi gayi bahut acchi kavita...bahut khub

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लोकतन्त्र के मूल्य यही हों।

Vijuy Ronjan ने कहा…

Bahut hi positive note liye hai ye kavita...jisme desh prem ke sath ek naitik aur charitrik shiksha par bhi bal diya gaya hai...
badhayee...

मदन शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !