मैं न आ आई थी तेरे दर
न जाने राह कैसे मुड गई |
चल तो रही थी , चाल थी धीमीं ,
न जानें गति कैसे बढ गई |
राह अनजानी सी थी ...
पर पाने की चाह ... न जाने
क्या कमाल कर गई |
चाँद सूरज के साथ चलकर ...
हम सफर करते गए |
अब भी न जान पाए
की हमको तुम कैसे मिल गये |
तन की किसने सोची ...
यहाँ तो मन ही थे मिल गए |
भान ही न पाए हम ,
कौन सी दुआ कब असर कर गई
न आये थे कुछ मांगने
न जाने ये दिल कैसे जुड़ गये |
कुछ क्षण को सारा आलम
एकदम से ठहर गया |
दो पल का आराम ...
हमारी आँखों में सपना नया भर गया |
देख मेरे पंख ...हवाओं ने भी ...
अपना रुख यु बदल दिया |
ड़ाल तो छुम गई ...
पर ड़ाल का पंछी हवा में उड़ गया |
मैं न आई थी , तेरे दर
रास्ता ही खुद मुड गया |
23 टिप्पणियां:
देख मेरे पंख ...हवाओं ने भी ...
अपना रुख यु बदल दिया |
ड़ाल तो छुम गई ...
पर ड़ाल का पंछी हवा में उड़ गया |
बहुत खूब ... रस्ते अचानक ही बदल जाते हैं और फिर हमें उनके अनुसार ही चलना पड़ता है ..
सुन्दर रचना .......
जुनून उससे मिलने का .......कहाँ कुछ आभास होने देता है |
अगर आदमी मे हौसला और जज़्बा हो तो हवायें अक्सर रुख मोड लेती हैं। अच्छे भाव। शुभकामनायें।
बहुत खूब -- भावमय रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत खूब -- भावमय रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत खूब -- भावमय रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत खूब -- भावमय रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत भावभीनी खुशबु ...इस कविता की
मुमकिन है के ख्वाबों को मंजिल मिल जाये तलाशते ख़ुद में
anu
उसकी नजरें और हवा रुख बदल लेती हैं।
bhut khubsrat rachna....
बहुत सुन्दर भावभीनी रचना|
कौन सी दुआ कब असर कर गई
न आये थे कुछ मांगने
न जाने ये दिल कैसे जुड़ गये |
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
मैं तो नहीं आयी तेरे द्वार जाने कैसे रास्ते मुड गए ...
यही तो नियति है ..
कोमल एहसास !
देख मेरे पंख ...हवाओं ने भी ...
अपना रुख यु बदल दिया |
ड़ाल तो छुम गई ...
पर ड़ाल का पंछी हवा में उड़ गया |
कोमल एहसास और सुंदर भाव लिए हुए बढ़िया कविता.
खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर भाव .... नित नये पूरे होने वाले सपने तुम्हारे नाम दोस्त :)
चाँद सूरज के साथ चलकर ...
हम सफर करते गए |
अब भी न जान पाए
की हमको तुम कैसे मिल गये |bahut khoobsoorat rachanaa.badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
मैं न आई थी , तेरे दर
रास्ता ही खुद मुड गया |...
बहुत खूब .........
wah minakshi ji
kamal kar diya aapne
dhanyawaad aapka
रास्ता खुद ही मुड गया था ... हवा भी तो उनका पता जानती है ... बहुत खूब लिखा है ..
बहुत सुन्दर भावमयी रचना...
रास्ते खुद मुड़ते जाते हैं मंज़िले मिलती जाती हैं रास्तों में .. लगता है ये सब पहले ही कहीं लिखा होता है ...
bahut khoob
nice blog
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