शांत बैठी लहरों को तब तक कोई कहाँ जान पाता है |
सागर कि उठती लहरें ही तो कराती है प्रलय का भान |
गगन में विचरते बादलों को भी तब मिलता है सम्मान |
गरज - बरस भिगो धरा को जब करते हैं वो अपना काम |
गरज - बरस भिगो धरा को जब करते हैं वो अपना काम |
हवा के आस्तिव को आज तक कोई कहाँ जान पाया है |
आँधियों का रूप ही तो उसके होने का पता बताते है |
खामोश बैठी रूह को कहाँ तब तक कोई सीने से लगता है |
उसके कर्म ही तो उसे सही - गलत कि पदवी दिलाता है |
इंसान के भीतर के दर्द को कब कहाँ कोई जान पाता है |
उसके चेहरे के हाव - भाव ही तो इसका पता बताते हैं |
बिना किसी चाहत के कहाँ दे रहा है कोई किसी को प्यार |
तभी तो सारे जहाँ में खोजता फिर रहा है वो थोडा सम्मान |
इंसान के भीतर के दर्द को कब कहाँ कोई जान पाता है |
उसके चेहरे के हाव - भाव ही तो इसका पता बताते हैं |
बिना किसी चाहत के कहाँ दे रहा है कोई किसी को प्यार |
तभी तो सारे जहाँ में खोजता फिर रहा है वो थोडा सम्मान |
10 टिप्पणियां:
सुन्दर चित्रण के साथ खुबसूरत रचना....
bahut khub
प्यार बना रहे विश्व में।
I loved it a lot..
its so melodious !!
इंसान के भीतर के दर्द को कब कहाँ कोई जान पाता है |
उसके चेहरे के हाव - भाव ही तो इसका पता बताते हैं |
sach...
गगन में विचरते बादलों को भी तब मिलता है सम्मान |
गरज - बरस भिगो धरा को जब करते हैं वो अपना काम
सच है कर्म करने पर ही सामान मिलता है ... चित्र भी बहुत कमाल का लगाया है आपने ...
बहुत ही खूबसूरत लफ़्ज़ संजोये हैं।
बिना किसी चाहत के कहाँ दे रहा है कोई किसी को प्यार |
तभी तो सारे जहाँ में खोजता फिर रहा है वो थोडा सम्मान |
umda khyalotassavvurat
बिना किसी चाहत के कहाँ दे रहा है कोई किसी को प्यार |
तभी तो सारे जहाँ में खोजता फिर रहा है वो थोडा सम्मान |
........बहुत सुन्दर ..>
sundar prstuti....
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