कितनी प्यारी कितनी मोहक
छूने भर से खो दे रौनक |खुशबु से जग को महकाए
भवरों का भी मन ललचाए |
इंसा के मन को है भाती
दुल्हन को भी खूब सजाती |
प्रभु के चरणों में शीश नवाकर
हर मौसम में फिर से खिल जाती |
अपने रंगों से जग को महकाकर
सारे जग में खुशबु फैलाती |
सब घरों की देखो है ये है शान
सब ही करते इसका सम्मान |
मंदिर में भी ये ही तो है जाती
मस्जिद में देखो शीश नवाती |
इसको न मतलब जात - पात से
हर सांचे में झट से ढल जाती |
मातम में भी रहता है इसका साथ
शादी को भी ये खूब रंगीन बनाती |
इसमें दीखता है देखो कितना संयम
टूटकर डाली से भी है प्यार जताती |
कितनी प्यार कितनी मोहक
छुने भर से खो दे रौनक |
खुशबु से जग को महकाती
भवरों का भी मन ललचाती |
9 टिप्पणियां:
वाह, बहुत सुंदर
bhaut hi sundar.....
बड़ी प्यारी कविता।
bahut sundar, bahut badiya
बड़ी प्यारी कविता। धन्यवाद्|
फ़ूल जैसी ही कोमल रचना
Lovely poem..
easy n catchy as nursery rhymes :)
बेहतरीन-सुन्दर रचना.
kya baat
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