हाइकु 
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तू , मैं पहेली 
संगी साथी सहेली 
चल अकेली |
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जीवन प्यास 
मन में उल्लहास 
मन उदास |
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दिल में आग 
नफरत का राग 
कर दे राख |
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हुआ अँधेरा 
फिर आया सवेरा 
जीवन फेरा |
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गर अल्पज्ञ 
अर्जित करो ज्ञान 
बनो सर्वज्ञ |
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पुरे करेंगें 
दिल के अरमान 
कभी न कभी |
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अँधेरी रात 
जुगनुओं की बात 
सोया संसार |
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8 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक हाईकू, सुन्दर संप्रेषण

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति.!

अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सहज साहित्य ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सहज साहित्य ने कहा…

आपके पहले चार हाइकु भावानुभूति और शिल्प की दृष्टि से बहुत अच्छे हैं । साहित्य-संसार में भाषायी या क्षेत्रवादी संकीर्णता नहीं होती । महत्त्वपूर्ण होता है ,वह भाव जो आदमी को आदमी से जोड़ता है। दोहा चौपाई , ग़ज़ल हाइकु , ताँका कुछ भी हो । आप निरन्तर इसी तरह सृजनशील रहें । हार्दिक बधाई ! ttp://www.hindihaiku.net/ पर भी आपके हाइकु आमन्त्रित हैं।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ rdkamboj@gmail.com
सम्पादक-http://www.laghukatha.com/
सह सम्पादक-http://issuu.com/hindichetna
सहयोगी सम्पादक डॉ हरदीप सन्धु जी के साथ)
http://www.hindihaiku.net/
http://trivenni.blogspot.in/

6 जून 2013 4:05 am

Ramakant Singh ने कहा…

आपने जीवन, प्रेम सहेली, दिल, ज्ञान, और अँधेरी रात को हाइकु के माध्यम से खुबसूरत आयाम दिए हैं बधाई

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

bahut badhiya

meri nayi post pe aapka swaagat hai: http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2013/06/blog-post.html