अनजाना शख्श


हमने तो कभी जाना ही न था
                         खुद को  इतने करीब से !
उसकी पारखी नजरो ने  न जाने
                        केसा ये कमाल कर दिया  !
हमने तो अभी अपनी ज़मी
                       मै न पहचान बनाई थी !
उसने तो हमारी गिनती
                     तारो मै लाकर ही कर दी !
वक़्त जेसे -जेसे अपनी
                  आग़ोश मै भरता चला गया !
हमारी पहचान  मै  और वो ............
                  इजाफा करता चला गया !
कितना प्यारा था वो शख्श
                जो हमे इतना प्यार करता था !
हमे खबर भी  न हुई
                 और वो दिल मै उतरता चला गया !
कितने प्यारे बन गये थे
                ये रिश्ते बिना किसी चाहत के !
और हम एक दुसरे  को
                   सम्मान देते ही चले गये !
न जाने ये दोस्ती का सफ़र
                 कब तलक  यु ही चलेगा !
न जाने कब वो  हमे तारो से ............
            फिर  सूरज की रौशनी कहेगा ?

2 टिप्‍पणियां:

Arun M ........अ. कु. मिश्र ने कहा…

न जाने ये दोस्ती का सफ़र
कब तलख यु ही चलेगा !
न जाने कब ............
.
.
धार तेज़ होती जा रही है.......
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ....
शुभकामनाएं!!

Minakshi Pant ने कहा…

शुक्रिया दोस्त !