क्यु मरने - मराने की बात करते हो |
क्यु बदलने - बदलाने की बात कहते हो |
ये तो जिंदगी का पहिंयां है |
हर पल यूँ ही चलता जायेगा |
किसी के इशारे पर ऊपर ,
तो किसी के इशारे पे नीचे आएगा |
ये बेकार की ही तो इक बहस है |
न किसी पर इसका ही फिर असर है |
हर कोई अपनी रफ़्तार से है चलता |
किसी को किसी की क्या फिकर है |
जानती सब है फिर भी जिद्द पे तू अड़ी है |
न बदली है तू , न बदलेगी ये दुनिया |
ये बहस ताउम्र एसे ही चलती रहेगी |
लोगों का हुनर उनसे कुछ न कुछ तो करवाएगा |
कुछ का असर अच्छा तो कुछ का बुरा कहलायेगा |
इसका असर तो पूरी दुनियां मै नज़र आएगा |
इतिहास के पन्नों मै फिर ये लिखा जायेगा |
लोगों की जुबाँ पर फिर उसका नाम आएगा |
तभी तो संसार मै वो उसकी पहचान करवाएगा |
10 टिप्पणियां:
kya kahne hain...:)
jindagi ke khusboo se parichay karwati rachna...!
zindgi ko nayi urja deti kavita...
उम्मीदों का पौधा पनपने को.
good evening
बहुत प्यारी बात कही।
काश, सभी को समझ में आती।
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अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
bahut badiya
सच में जीना प्रारम्भ किया जाये।
bahut pyari kavita
umar beet rahi hai larhte huye. jane kab jeene ki shuruat hogi.
सुंदर अभिव्यक्ति।
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