मेरी ख्वाइश है की मैं फिर से
फ़रिश्ता हो जाऊ |
माँ से इस तरह लिपटू की...
फिर से बच्चा हो जाऊ |
माँ से दूर मैं हो जाऊ
माँ से दूर मैं हो जाऊ
ये कैसे हो सकता है |
माँ का साया तो हरदम
पास मेरे ही रहता है |
माँ जब कभी भी मुझे
डांट कर चली जाती है |
मैं मुहं चिढाता हूँ
तो वो हंस के पास आती है |
माँ के डांटने मे भी
प्यारा सा एहसास होता है |
उसके उस एहसास में भी
प्यारा सा दुलार रहता है |
हर पल वो मेरे दर्द को
साथ ले के चलती है |
जब मैं परेशां होता हूँ तो
वो होंसला सा देने लगती है |
माँ न जाने मेरे हर गम में
कैसे शरीक लगती है |
जेसे वो हर पल मेरे ही
इर्द - गिर्द रहती है |
कितना नाजुक और
पाक सा ये रिश्ता है |
बिना किसी शर्त के
हर पल हमारे साथ रहता है |
ओर हमें प्यारा सा
उसका स्पर्श हरदम
मिलता ही रहता है |
4 टिप्पणियां:
सच में ऐसा हो जाए की माँ का का प्यार हमेशा मिलता रहे ...उसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े ..आपकी कविता बहुत मर्मस्पर्शी है ...आपका आभार
मां तुझे सलाम.
maa ki mamta
bahut sunder
i love my mom,
aapki poem matri pyar me lipati hui hai.
abhar.
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