चाँद तारों की बात करते हो
हवा का रुख को बदलने की
बात करते हो
रोते बच्चों को जो हंसा दो
तो मैं जानूँ |
मरने - मारने की बात करते हो
अपनी ताकत पे यूँ इठलाते हो
गिरतों को तुम थाम लो
तो मैं मानूँ |
जिंदगी यूँ तो हर पल बदलती है
अच्छे - बुरे एहसासों से गुजरती है
किसी को अपना बना लो
तो में मानूँ |
राह से रोज़ तुम गुजरते हो
बड़ी - बड़ी बातों से दिल को हरते हो
प्यार के दो बोल बोलके तुम
उसके चेहरे में रोनक ला दो
तो मैं जानूँ |
अपनों के लिए तो हर कोई जीता है
हर वक़्त दूसरा - दूसरा कहता है |
दुसरे को भी गले से जो तुम लगा लो
तो मैं मानूँ |
तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है
खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो
तो मैं मानूँ |
12 टिप्पणियां:
सच में ऐसा करने में अगर कोई सफल हो जाता है तो वह मानवता के लिए कल्याण का कारण बन जाता है ..बहुत प्रेरणादायी...आपका आभार
अपनी ताकत पे यूँ इढ्लाते हो
इठलाते *
तो में मानूँ
मैं *
इन्हें जरा ठीक कर लें
आपका आभार आपने मेरे कल के सुझाब पर गौर किया ..आशा है आप यूँ ही प्रोत्साहित करते रहेंगे ..
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो
तो मैं मानूँ
बहुत ही प्रेरक कविता.
सादर
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वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी जी के ब्लॉग पर आज मेरा लेख
sahi kaha aapne .badhai .
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो तो मैं मानूँ | ..
sach me aisa ho jaye....:)
ek gana yaad aa gaya...isko nachya to kya kiya,usko nachaya to kya kiya...dara singh ko nachao to jane...:D
kidding dost!!
पूरा का पूरा जीवन दर्शन ही निहित है ....रचना में
'अहा वही उदार है परोपकार जो करे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे '
यही तो सार्थक जीवन की परिभाषा है जिसे बहुत सुन्दर ढंग से चित्रित किया है आपने
प्रेरक और संदेश देती रचना।
कोई माने न माने हमने मानी आपकी नेकनीयती.
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो
तो मैं मानूँ |
सार्थक सुंदर भावपूर्ण असरदार रचना -
बधाई
प्रेरणा देती बेहद शानदार रचना.
कविता का अनुकरण और अनुपालन किया जाये तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाए..
बस फिर तो हर समस्या का हल निकल आएगा..... खूब
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