ये जो आसमां में बादलों के साये हैं |
धरा से आसमां में किस कदर ये छाए हैं |
कितने हक से दोनों जहाँ में रहते हैं |
बरसते तो हैं ये उमड़ - घुमड़ के ,
फिर उनके ही दामन से लिपट जाते हैं |
फिर उनके ही दामन से लिपट जाते हैं |
कैसा रिश्ता है आपस में दोनों का इस कदर
बिछुड़ने पर भी हर बार मिलने को ये तरसते हैं |
गरजते हैं बरसते हैं , न जाने एक दूजे से
क्या ये कहते हैं |
क्या ये कहते हैं |
फिर भी एक ही आशियाँ में जाके साथ रहते हैं |
धरा की प्यास ये बुझाते हैं |
प्रकृति को हरा - भरा बनाते है |
सारी सृष्टि को नया जीवन दे कर...
निस्वार्थ भाव... अपना परिचय बतलाते हैं |
निस्वार्थ भाव... अपना परिचय बतलाते हैं |
कई - कई बार इस कदर खुद को मिटाते हैं
फिर उसी आस्तिव को पाने उसी रूप में आ जाते हैं |
15 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
सादर
parichay padkar achchha laga
'कैसा रिश्ता है आपस में
दोनों का इस कदर कि
बिछुड़ने पर भी हर बार
मिलने को ये तरसते हैं '
यही तो है अमर प्रेम.......भावपूर्ण सुन्दर रचना
पृथ्वी को रह रह कर अपना अस्तित्व याद दिलाने आ जाते हैं ये बादल।
खूब पहचानी आपने रिश्तों की घनिष्ठता.
Bahut sunder parichay
lajawab
aabhar........
भावपूर्ण सुन्दर रचना
बहुत खूब...शुभकामनायें !!
बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
bahut achchi lagi.
कैसा रिश्ता है आपस में
दोनों का इस कदर की ,
बिछुड़ने पर भी हर बार
मिलने को ये तरसते हैं |
गरजते हैं बरसते हैं |
न जाने एक दूजे से
क्या ये कहते हैं ...
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
aap sabhi ko shukriya doston
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई
बहुत ही सुन्दर ..भावमय करते शब्द ।
कई - कई बार इस कदर
ये खुद को मिटाते हैं
पर फिर से उसी आस्तिव
को पाने उसी रूप में
आ जाते हैं |
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
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