चारों तरफ क्रंदन ही क्रंदन
इन्सान इतना बेरहम
कब से हो गया |
किसी के दर्द से जैसे
उसका कोई वास्ता ही नहीं |
अपने दर्द में इतनी झटपटाहट
और दुसरे का दर्द ...
सिर्फ एक खिलखिलाहट |
फिर क्यु अपने लिए ... दुसरे की
आस लगता है वो ?
जब दुसरे के दर्द तक को तो
सहला नहीं पाता है वो |
क्या उसकी सहानुभूति
सिर्फ अपने तक ही है ?
क्या दूसरों के लिए उसके
दिल में कोई जगह ही नहीं ?
शायद इसी वजह से
इतना दर्द है सारे जहान में |
इतनी चीख - पुकार है
सारे संसार में |
बस सब इसी इंतजार में हैं शायद ...
की कोई तो मेरी दर्द भरी
आवाज़ को ...सुन पायेगा |
और देखकर मेरे हालत को
वो प्यार से मरहम लगाएगा |
16 टिप्पणियां:
बहुतेरे हैं ऐसे भी, लेकिन चुपचाप अपना काम करते रहते हैं.
अपने दर्द में इतनी झटपटाहट
और दुसरे का दर्द ...
सिर्फ एक खिलखिलाहट |
zyada jagah to yahi dikh raha hai.
sahi kaha aapne, insaan sirf apne dard par hi rota hai
dard to dard hai ,
aha to aha hai ,
teri ho ya meri ho ,
thodi ho ya bhuteri ho ,
ye dar hai ,anant ka dard
इन आँसुओं को कोई कंधा तो मिले।
kahin ye padha tha..
अन्याय के निकट इतनी ख़ामोशी भी अच्छी नहीं
कि गूंगी मौत नसीब हो और मासूम आँखों के आगे
अनसुलझे सवाल रह जाएँ !!!
kab tak samajh me aayegi dusro ka dard..
'अपने दर्द में इतनी छटपटाहट
और दूसरे का दर्द.........
सिर्फ एक खिलखिलाहट '
आदमी संवेदनशून्य हो रहा है.......अच्छे भाव
संवेदना मरती जा रही है।
हमारी संवेदनाएं बर्फ हो रही हैं ....
जब दुसरे का दर्द दुखी नहीं करता तो उससे क्यों उम्मीद लगाई जाए की वो हमारे लिए दुखी होगा !
उम्दा ख्याल !
पकीकत से रूबरू कराती सुन्दर रचना!
हकीकत को बयां करती सुन्दर रचना| धन्यवाद|
अपने दर्द में इतनी झटपटाहट और दुसरे का दर्द ...दूसरे की खुशी नहीं सुहाती ! क्या हो गया है इंसान को? बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये रचना
दुखद हालात
सिर्फ़ ऐसा ही है बात ऐसी भी नही है| तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो यह ज़रूर है कि ऐसे लोग ज्यादा हैं जिनकी संवेदना उन्हें अंदर से कुरेदती नही| लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो अभी भी दूसरे के दर्द में अपना दर्द महसूस करते हैं|
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