ये अपने विचारों का द्वन्द है ,
जीने दो उसको जो स्वछन्द है |
निराधार है सारी बातें ,
जिसमें कोई सार नहीं |
नाम के हैं सारे रिश्ते ,
जिसमें प्यार नहीं , सत्कार नहीं |
क्या बतलाएं उन जख्मों को ,
जिनके भरने की तो बात नहीं |
हाहाकार है सारी दुनियां में ,
यहाँ जीने के आसार नहीं |
इस रंग बदलती दुनिया में ,
कौन एसा है जो बेकार नहीं |
हाय - हाय का शोर है हरतरफ ,
कोई कोना भी आबाद नहीं |
बात कहने से बात बिगडती है ,
बातों में अब शिष्टाचार नहीं ,
कसम खा लेने भर से ...
मिट सकता भ्रष्टाचार नहीं |
हर तरफ नफरत की आग लगी है ,
जिसका कोई पारावार नहीं |
12 टिप्पणियां:
इस रंग बदलती दुनिया में , कौन एसा है जो बेकार नहीं
sundar panktiyan,
bahut bahut aabhar
@बातों में अब शिष्टाचार नहीं , कसम खा लेने भर से ... मिट सकता भ्रष्टाचार नहीं |- बहुत सही कहा आपने.
विचारोत्तेजक कविता।
दर्शन से परिपूर्ण गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...बधाई.
बढ़िया अभिव्यक्ति!!
बहुत सुन्दर
हाहाकार है सारी दुनियां में ,
यहाँ जीने के आसार नहीं |
दुनिया रंग रंगीली पर ऐसा बदरंग-सा मंजर.
bahut hi achhi kavita kahi aapne,
dil ko chhu gayi!
ये अपने विचारों का द्वन्द है ,
जीने दो उसको जो स्वछन्द है |
कौन किसे है बाँध सका?
सुन्दर अभिव्यक्ति
बधाई.
मीनाक्षी जी , बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति । फिर मैं यही कहना चाहूँगा कि हमें आशा की डोर तो थाँम कर रखनी ही पडेगी । मैंने Saturday, February 12, 2011, ……कुछ कदम चल कर तो देखे , में भी कुछ इसी तरह का विचार व्यक्त किया था। यदि समय अनुमति दे अवश्य इस पर एक नजर डालने का प्रयाश करियेगा।
iss rang badalti duniya me ......kya kahun!! koi bekar nahi, koi bejar nahi..:)
ek bahut pyari se rachna...jisko sayad ek naari ne apne charo aur ke paripeksheye me apni soch aur gusse ko darshaya hai..!!
waise to lagta nhi, kuchh hoga...par ye ummid hai jo manti nahi...har din marte hain, fir bhi dil kahta hai sayad kal ki subah pyari hogi...:!
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