मैं , अहम् , अहंकार ...
क्या रखा है इसमें ?
कुछ भी तो नहीं |
पर इन्सान सारी उम्र सिर्फ
और सिर्फ इसीको पाने
में ही गुजार देता है |
धन है तो अहंकार |
यश है तो अहंकार |
पद है तो भी अहंकार |
ताक़त है तो अहंकार |
अरे और तो और , त्याग करने
में भी अहंकार |
मैं से बड़ा झूट तो इस
दुनिया में दूसरा कोई है ही नहीं |
फिर ये सब क्यु और किसलिए ?
फिर ये घमंड ये अहंकार ?
ये सब तो क्षण भंगुर हैं |
पर इसका असर बहुत
भयंकर है ये एक दुसरे को तोड़ने के
सिवा और कुछ नहीं करता |
जिसका कोई आधार ही
वो सत्य कैसे हो सकता ?
प्रकृति को ही देखो न
क्या नहीं है उसके पास ?
लेकिन वो जानता है |
हर बात को समझता है ,
की जो भी है वो सिर्फ थोड़ी देर का है ,
सब कुछ नाशवान है |
उससे मोह कैसा ?
जो अपना है ही नहीं ,
जो हर वक़्त हमारे साथ
रह ही नहीं सकता
उसके लिए मैं , अहंकार , घमंड कैसा ?
5 टिप्पणियां:
aapne sahi kaha
aabhar..
बहुत अच्छी रचना। जो भी मनुष्य अहंकार करता है उसका एक न एक दिन पतन अवश्य होगा।
अहंकार त्याग के देखें, आनन्द का उजाला है।
"मैं" शब्द हर समय अहंकार को जन्म देता है...
इसलिए "मैं" को भूलकर "हम" में आ जाएँ...
aapne sahi kaha
kintu ahankaar se maanv ki buddhi khtm ho jaati hai,
ahankaar to raavan ka bhi nahin raha
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