सिर्फ शोर

हर तरफ भीड़ 
जहां देखो वहीँ  शोर 
कहाँ ठहरती है ये ...भीड़ 
सिर्फ कुछ पल 
फिर वही सन्नाटा |
और फिर सब अपनी राह ...
क्यु बन जातें हैं हम 
इसका हिस्सा ?
कौन  है जो सुनेगा वहां 
वहां तो सिर्फ शोर है |
आवाज से आवाज का टकराना 
और फिर बिना कुछ पाए 
वापस लौट  जाना |
वहां तो खुद की आवाज भी 
ठीक से नहीं सुनती 
फिर किसी और की बात ?
नहीं - नहीं भीड़ का 
कोई आस्तिव नहीं ...
वहां सिर्फ शोर है 
जहां वो सिर्फ अपनी 
कहने को ठहरा है |
उसमें किसी का भी हित नहीं 
गौर से देखो तो 
सिर्फ खालीपन 
इसके सिवा कुछ भी नहीं |

10 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

एकदम सधी हुई पंक्तियाँ सटीक अर्थ संप्रेषित करती हुई ....यह भीतर का शोर मन में द्वंद्व पैदा करता है ...आपका आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत लाजवाब और उम्दा लिखा है.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बाहर रेला, मन खाली है,
कौन कहे यह दीवाली है।

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बहुत लाजवाब और उम्दा लिखा है !
एकदम सटीक पंक्तियाँ

निर्मला कपिला ने कहा…

सरल भाव, सुन्दर-- शुभकामनायें।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

is shor mein kabhi kabhi apni soch bhi shor ban jati hai

Arun M ........अ. कु. मिश्र ने कहा…

कौन है जो सुनेगा वहां
वहां तो सिर्फ शोर है |
आवाज से आवाज का टकराना
और फिर बिना कुछ पाए
वापस लौट जाना .....
उत्तमम!!

Vijuy Ronjan ने कहा…

शोर को सुनना भी एक कला है...जब सन्नाटे खामोश हो जाते हैं तब हमें शोर सुनाई देता है ....वह शोर जिसमें हम खुद को जीवित महसूस करते हैं। बहुत बढ़िया प्रस्तुति मीनक्षी जी,...आभार।

Minakshi Pant ने कहा…

aap sabhi ka bahut bahut shukriya dost

Rakesh Kumar ने कहा…

आवाज ही शोर या सुर में सुनाई पड़ती है.शोर में किसीका हित नहीं ,खालीपन है, पर सुर और संगीत में तो हित ही हित है,भराव है ,यहाँ तक कि ईश्वर का दर्शन भी हो सकता है सुर से.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.