अमीरी - गरीबी

जग में  फैला चारों तरफ  कैसा ये द्वन्द है |
जिसका दिखता न जहां में अब कोई अंत है |


अमीरी खुद को देख मुस्काती है जिस पल  |
गरीबों की आँखें तो भीग जाती है उसी पल  |


ये कैसे  एहसासों की  फैली हुई सी गंध है |
जिससे आज भी भरा पडा सारा समुन्द्र है |


न जाने ये फासला कबतक रहेगा दोनों में |
अमीरों की बेरुखी  दर्द करेगी उनके सीने में |


अगर ये सिर्फ पेट भरने तक की ही बात होती |
तो सारा जहां आज बन गई एक मशाल होती |


ये कोई भूख नहीं !  ये तो सिर्फ हवस भर ही है |
तभी तो इसका आजतक न दिखा कोई अंत है |


अमीर की चाहत उसे न जाने कहां ले जाएगी |
गरीबों की पुकार भी क्या वो कभी सुन पायेगी |


ये सिलसिला तो जहां में बहुत - बहुत पुराना है |
गरीबों को तो बस अपने वादों पे जीते जाना है |


युग आता है हर बार और आके चला जाता है |
उन्ही  पन्नों को फिर से  रंगीन बना जाता है |


गरीबों के गिरेबान में झांककर कौन देखता है |
उनके दर्द को तो खुदा की रहमत ही कहता  है |


उनकी दास्ताँ यही है उनको ऐसे ही जीते जाना है |
छोडो कुछ और कहें , ये फलसफा बहुत पुराना है |




15 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

अमीर की चाहत उसे न जाने कहां ले जाएगी |
गरीब की पुकार क्या कभी , वो सुन पायेगी |

बिलकुल सही बात कही आपने.

सादर

वाणी गीत ने कहा…

दोनों ही बढ़ रहे हैं ...गरीब की गरीबी और अमीर की अमीरी !

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

सच कहा ,गरीब की गरीबी और अमीर की अमीरी तो वहीं टिकी हैं.....

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बिलकुल सही बात कही आपने.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

अमीर की चाहत उसे न जाने कहां ले जाएगी |
गरीब की पुकार क्या कभी , वो सुन पायेगी |


ये सिलसिला आज का नहीं बहुत पुराना है |
उसे तो हर हाल में अपने वादों पे जीते जाना है |

sach me kab ye duri kam hogi...pata nahi kab!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

गरीब की गरीबी और अमीर की अमीरी
....बिलकुल सही बात कही आपने

Kailash Sharma ने कहा…

युग आता है और आके युहीं चला जाता है |
उन्ही पन्नों को और रंगीन बना जाता है |

बहुत सच कहा है...बहुत सार्थक रचना.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ये भूख नहीं ! ये तो दिखती एक हवस है |
तभी तो इसके अंत की न कोई इन्तहा दिखती |
bahut sahi

Rahul Singh ने कहा…

बहुत कुछ कहती तस्‍वीरें.

Unknown ने कहा…

गरीब की पुकार क्या कभी , वो सुन पायेगी???????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????

kya baat hai.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विरोघाभासी दुनिया जीवन में गति बनाये रहती है।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

यही जीवन का विरोधाभास है..... बहुत बढ़िया

देवेंद्र ने कहा…

बहुत भावपूर्ण अबिव्यक्ति मीनाक्षी जी। मानव की संग्रह की तृष्णा और घटती मानवीय संवेदनाऔॆ से यह खाईं और बढती जाती है।

जीवन और जगत ने कहा…

अंधा क्‍चा चाहे, दो ऑंखें। भूखा क्‍या चाहे, दो रोटियां। गरीब आदमी को पेट की भूख के सिवा कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं है। अमीर आदमी को खाने तक की फुर्सत नहीं है।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

गरीबों के गरीबी का वही आलम पुराना है |
चलो अब कुछ और कहें ,
ये फलसफा तो सच में बहुत पुराना है |"

पुराना फलसफा है पर आपने उसको नया कर दिया --बधाई हो !