दिल का क्या है ...
न जाने किसके पहलूँ में जाके ठहर जाये |
किसी पहचान की उसे ...
जरूरत ही कहाँ होती है |
बस निकल जाता है किसी भी पल
खुद को कुर्बान करने ,
फिर लाख बुला लो , कहाँ मानता है |
बहुत जिद्दी है ये हमारी तरह
अपने पहलूँ में तो , पल भर ठहरता ही नहीं |
बस जहां ख़ुशी मिली की बस
उसकी तरफ ही लपक लिए |
यूँ कहो की उससे ही जुड़ने को बेताब |
पर ये बैरी जमाना ...
कहाँ ठहरने देता है उसे वहाँ ...
वो तो बस आँखे बिछाये
इसी इंतजार में खड़ा रहता है कि ...
कब वो अपने सफ़र पर निकले
और वो अपने काम को अंजाम दें |
बहुत पहरे हैं उसपर ...
पर वो भी किन्ही बेड़ियों से कब डरता है |
सारे बन्धनों को पल - भर में तोड़
अपने सफ़र को निकल चलता है |
फिर अंजाम कि किसे परवाह ?
अजी ... दिल $$$ है कि मानता नहीं |
20 टिप्पणियां:
'दिल है कि मानता नहीं '
..................मनमोहक अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना...
मीनाक्षी जी दिल बहुत अनमोल है.मीरा ने तो बहुत सोच समझ के दिया इसे कान्हा को और खरीद लिया दिल ही से
'मैंने तो लिए रे गोविन्दो मोल
कोई कहे कालो,कोई कहे गोरो
लिया रे तराजू तोल
मैंने तो लिए रे गोविन्दो मोल'
DIL KE KARAN HI TO BADI PARESHAANI HAI KAB KAHAN KIS CHEEJ PER AA JAAYE.PHIR WO NAA MILE TO KITANAA BECHAIN HO JAAYE ISKO SAMBHALANAA MUSHKIL HO JAATAA HAI.KYONKI DIL HAI KI MAANTAA NAHI.BAHUT ACHCHI RACHANAA.BADHAAI AAPKO.
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दिल की खूबी दिल ही जाने
ये तो दिल की बात है...
Dil to baccha hota hai...bhala maane to maane kaise....khushi ki talash har shay me karta hai dil...jahan mile khushi ka thaur...chal dia usi oar...
Bahut accha hai Minakshi Ji..Uttam baat sahi dhang se aur sahi samay par prastut.
दिल तो दिल है.
दिल तो बच्चा है जी ।
दिल तो दिल है जी ....वो कब किसी कि सुनता है
dil to hai dil dil ka etbaar kya kijaye... bhu hi khubsurat rachna...
दिल का भरोसा नहीं है।
बहुत अच्छी लगी यह कविता और इसके भाव।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
दिल कब मानता है
दिल तो दिल है , कब किसी कि सुनता है
मनमोहक भावअभिव्यक्ति.
दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है?
आखिर इस दर्द की दवा क्या है?
मनमोहक अभिव्यक्ति, सुन्दर रचना.
वाह .. लाजवाब लिखा है ... दिल तो बच्चा है ...इसलिए मानता नही ...
"दिल का क्या है ...
न जाने किसके पहलूँ में जाके ठहर जाये |
किसी पहचान की उसे ...
जरूरत ही कहाँ होती है |"
तभी तो...
'दिल है कि मानता नहीं '
पर ये बैरी जमाना ...
कहाँ ठहरने देता है उसे वहाँ ...
वो तो बस आँखे बिछाये
इसी इंतजार में खड़ा रहता है कि ...
कब वो अपने सफ़र पर निकले
और वो अपने काम को अंजाम दें |
बहुत पहरे हैं उसपर ...
पर वो भी किन्ही बेड़ियों से कब डरता है |
सारे बन्धनों को पल - भर में तोड़
अपने सफ़र को निकल चलता है |
wah zamaane aur dil dono ki fitrat ka kya khoob chitran kiya hai ! badhaai
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