सोचती हूँ पलकों में छुपाकर मैं उसे रख लूँ |
मगर भीनी महक तो वो साथ लेके चलता है |
मैं आँखे बंद करती हूँ एक चुभन सी होती है |
उस दर्द से ही वो हरपल मेरे साथ रहता है |
उसे कोई न देखे मैं उसे दिल में छुपाती हूँ |
पर क्या करू आंखे हर राज़ खोल देती है |
जमाना करता है रुसवा मैं आंसू बहाती हूँ |
उसका एहसास मुझे हिम्मत दिलाता है |
जब भी मैंने चाहा एक प्यारी गज़ल लिखूं |
ख्यालों में उसे रख फिर मैं कलम चलाती हूँ |
वो अपनी कहता है फिर मैं अपनी सुनाती हूँ |
फासले जिंदगी के इस तरह फिर मैं सजाती हूँ |
14 टिप्पणियां:
वो अपनी कहता है फिर मैं अपनी सुनाती हूँ |
फासले जिंदगी के इस तरह फिर मैं सजाती हूँ |
यह जिन्दगी के नहीं ....विचारों के फासले ....बस यह फासले मिट जाएँ जिन्दगी स्वतः ही करीब आ जाएगी ...!
beauty as well as complexity of life.. beautifully expressed !!
Awesome read :)
खूबसूरती से सजा लिए हैं मन के भाव ...फिर फासले कहाँ ?
भावों की बहुत सुन्दर प्रस्तुति |बधाई
आशा
संवाद की डोर से फासले भी कम होने लगते हैं।
वाह जी, बहुत सुंदर। आपको पढना वाकई सुखद है।
जमाना करता है रुसवा मैं आंसू बहाती हूँ |
उसका एहसास मुझे हिम्मत दिलाता है |
रोचक रचना....
जमाना करता है रुसवा मैं आंसू बहाती हूँ |
उसका एहसास मुझे हिम्मत दिलाता है |
very natural emotions are beautifully described in this lovely ghazal.
.
सुन्दर अनुभूति की कविता
@ मैं आँखे बंद करती हूँ एक चुभन सी होती है |
उस दर्द से ही वो हरपल मेरे साथ रहता है |
एक बार फिर यादों ने रुलाया।
sanvedansheel rachna....
गहन भावाभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत खूबसूरत एहसास...
वो अपनी कहता है फिर मैं अपनी सुनाती हूँ |
फासले जिंदगी के इस तरह फिर मैं सजाती हूँ |
बधाई और शुभकामनाएं.
उसे कोई न देखे मैं उसे दिल में छुपाती हूँ |
पर क्या करू आंखे हर राज़ खोल देती है |
bahut khub
BASHIR BADR sahab li ek line yad aa gayi
"in aankhon ko ab khaw chupana nahin aata"
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