झूठ - झूठ और झूठ
सच्चाई का तो दूर - दूर
तक कोई परिचय ही नहीं !
क्या होती है वास्तविकता
क्या हम जानते हैं ?
मेरे ख्याल से तो नहीं !
क्युकी हमारे जीवन मै
उसका तो दूर - दूर तक
कोई आभास ही नहीं
हम तो सिर्फ और सिर्फ
जीते भी हैं तो ...........
तो सिर्फ ये सोच कर
की ....अगर एसा किया .......
तो वो क्या कहेगा !
अगर वेसा किया
तो वो क्या सोचेगा !
हम तो अपने आप से ही
परिचित नहीं ..........
की मै कोंन हु ?
क्या चाहता हु ?
मुझे ख़ुशी केसे मिलेगी ?
हम तो सिर्फ दूसरों .......
के गुलाम भर हैं !
दुसरो की बातों .......
पर जीते हैं !
और उन्ही के लिए
मरते भी रहते हैं !
फिर हमे कितनी भी
तकलीफ ही क्यु न
हो रही हो !
पर हमे तो बस
एसे ही जीना है !
क्यु एसा क्यु ?
जब हर कोई .........
इस दर्द से परेशान हैं ,
तो फिर क्यु इस कदर
झूठी जिंदगी जीते हैं हम
जिसमे खुद अपना परिचय
ही भूल जाते हैं हम
क्यु न इस अंदाज़ को
बदल डाले हम !
वास्तविकता से अपना ही
परिचय करा डाले हम !
और इतिहास के सुनहरी .
पन्नो मै अपना ही..........
नाम रच डाले हम !
3 टिप्पणियां:
आपने तो बहुत अच्छा लिखा. 'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
इतनी प्यारी सी गुडिया हमारे ब्लॉग मै आये और हम उसका शुक्रिया भी न करे , एसा केसे हो सकता है !
बहुत बहुत धन्यवाद दोस्त !
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
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