सिर्फ मैं

 
मैं , अहम् , अहंकार ...
क्या रखा है इसमें ?
कुछ भी तो नहीं |
पर इन्सान सारी उम्र सिर्फ 
और सिर्फ इसीको पाने 
में ही गुजार देता है |
धन है तो अहंकार |
यश है तो अहंकार |
पद है तो भी अहंकार |
ताक़त है तो अहंकार |
अरे और तो और , त्याग करने 
में भी अहंकार |
मैं से बड़ा झूट तो इस 
दुनिया में दूसरा कोई है ही नहीं |
फिर ये सब क्यु और किसलिए ?
फिर ये घमंड ये अहंकार ?
ये सब तो क्षण भंगुर हैं |
पर इसका असर बहुत 
भयंकर है ये एक दुसरे को तोड़ने के
सिवा और कुछ नहीं करता  |
जिसका कोई आधार ही 
वो सत्य कैसे  हो सकता ?
प्रकृति को ही देखो न 
क्या नहीं है उसके पास ?
लेकिन वो जानता है |
हर बात को समझता है ,
की जो भी है वो सिर्फ थोड़ी देर का है ,
सब कुछ नाशवान है |
उससे मोह कैसा ?
जो अपना है ही नहीं ,
जो हर वक़्त हमारे साथ 
रह ही नहीं सकता 
उसके लिए मैं , अहंकार , घमंड  कैसा ? 

5 टिप्‍पणियां:

OM KASHYAP ने कहा…

aapne sahi kaha
aabhar..

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी रचना। जो भी मनुष्य अहंकार करता है उसका एक न एक दिन पतन अवश्य होगा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहंकार त्याग के देखें, आनन्द का उजाला है।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

"मैं" शब्द हर समय अहंकार को जन्म देता है...
इसलिए "मैं" को भूलकर "हम" में आ जाएँ...

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

aapne sahi kaha

kintu ahankaar se maanv ki buddhi khtm ho jaati hai,

ahankaar to raavan ka bhi nahin raha