छन - छन - छन - छन - छन
झंकृत करती सी ये प्यारी ध्वनी |
कानों को मोहित करने लगी |
लगता है जैसे गाँव की दुल्हन ,
शहर में रहने को मचलने लगी |
वो चूड़ियों की खनखनाहट ,
दिल में घर यूँ करने लगी ,
जैसे सात स्वरों के साथ वीणा
खुद बजने लगी |
सर से सरकता वो पल्लू
बेताबी एसे बढ़ाने लगा ,
जैसे बादलों की ओट से
चाँद का दीदार होने लगा |
उसकी खिलखिलाती सी हंसीकली से फुल बनने लगी |
उसकी बलखाती सी वो चाल
न जाने कैसा असर करने लगी
जैसे साकी पर बिन पिए ही ...
असर करने लगी |
न जाने ये कैसी बैचेनी
मुझमें अब होने लगी |
ख्यालों की ये खुबसूरत बला
हकीक़त में तबदील होने लगी |
असर करने लगी |
न जाने ये कैसी बैचेनी
मुझमें अब होने लगी |
ख्यालों की ये खुबसूरत बला
हकीक़त में तबदील होने लगी |
6 टिप्पणियां:
मधुरिम पंक्तियाँ।
सुंदर सहमे ख्याल ...
ati sundar rachna, bahut hi sundar khyaal
तस्वीर से आगे बढ़ने में समय लगा, इतनी सुंदर तस्वीर चुनें तो सुझाव है कि उसे अंत में लगाएं, आरंभ में नहीं.
तस्वीर तो जैसी भी है, आपकी कलम ने इस तस्वीर को भी फीका कर दिया।
इतना अच्छा लिखा कि मन में कल्पना के जरिए एक सुंदर दुल्हन बन गई जो तस्वीर से ज्यादा अच्छी है।
अच्छे शब्द अच्छे विचार अच्छे भाव।
सुंदर अभिव्यक्ति।
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