कैसी है ये जिंदगी

जिंदगी की भी अपने आप में... 
एक अजब सी है  कहानी  |
जितना इसके करीब जाओ 
उतनी हमसे दूर है चली जाती  |
और जब हम ... दूर जाना चाहें 
तो ये उतना करीब है आ जाती  |
शायद ये दूर से पास आने - जाने के 
एहसास का नाम ही है जिंदगी  |
न तो खुद करीब है ये आती  | 
न ही  खुद से दूर , जाने ही है ये देती |
समझ ही नहीं आता , कि हमसे 
और क्या - क्या है ये चाहती |
बस जब देखो हममें एहसासों का ...
एक नया रंग है भरती जाती  |        
और उसी में हमें  बांध कर ...
हमसे वो दूर है निकल जाती  |
अपनी जिंदगी तो वो ...
हममें रहकर  है जी जाती  |
हमें हमारी ही जिंदगी से 
महरूम करके है चली जाती  |
बहुत खुबसूरत अंदाज़ है 
उसके जीने का |
खुद पर तो वो कोई इल्ज़ाम 
ले कर ही नहीं चलती  |
बस हमें  हमारे हाल पर ही 
हरदम है छोड़ जाती |
काश ये अंदाज़ हम भी 
थोड़ा - थोड़ा जान लेते    |
तो जिंदगी को एसे  थाम लेते ,
कि खुद से दो कदम भी दूर
 कहीं जाने ही न देते |

5 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

ज्रिदगी कैसी है पहेली...

Shikha Kaushik ने कहा…

Meenakshi ji bahut hi sundarta ke sath jindgi ko pribhashit kiya hai ....

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

jindagi kaisi hai paheli

kabhi to hansaye , kabhi to rulaaye

jindagi ........

निर्मला कपिला ने कहा…

काश ये अंदाज़ हम भी
थोड़ा - थोड़ा जान लेते |
तो जिंदगी को एसे थाम लेते ,
कि खुद से दो कदम भी दूर
कहीं जाने ही न देते
ज़िन्दगी कब किसी के हाथ आती है
अच्छी रचना
बधाई।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'शायद ये दूर से पास आने-जाने के

एहसास का नाम ही है जिन्दगी '

जिंदगी की जद्दोजहद को शब्द देती रचना