सपने तो थे फूल से , दिल में चुभे शूल से ,
लूट लिए सारे सपने , बागों के बबूल ने |
हम तो बस खड़े - खड़े , बहार देखते रहे |
कारवां निकल गया , हम धुल देखते रहे |
कैसा था ये मंजर , धुप अब थी ढल चुकी |
अब आगे क्या बढ़ते , जिंदगी थी लुट चुकी |
पत्ते - पत्ते झर चुके , शाख जैसे जल गई |
चाह पूरी न हुई , उम्र सारी थी गुजर गई |
गीत मेरे थे रुक गये , छंद मंद पड़ गये |
साथ के संगी - साथी , धुवां बनके उड़ गये |
आज हम वहीँ खड़े , थोड़े से झुके - झुके |
उम्र के पढाव पर , उतार देखते रहे |
कारवां चला गया , हम राख देखते रहे |
धूल में उड़ता हुआ , बस गुबार देखते रहे |
8 टिप्पणियां:
कारवां चला गया , हम राख देखते रहे |
धूल में उड़ता हुआ , गुबार देखते रहे |
बहुत मनमोहक लिखा है आपने.
सादर
आपके ब्लॉग में पढ़ कमेंट दे चुके हैं।
achchha likha hai aapne
|गीत मेरे रुक गये , छंद मंद पड़ गये |साथ के संगी - साथी , धुवां बनके उड़ गये |आज हम वहीँ खड़े , थोड़े से झुके - झुके |उम्र के पढाव पर , उतार देखते रहे |कारवां चला गया , हम राख देखते रहे |धूल में उड़ता हुआ , गुबार देखते रहे |&nbs...bahut hi bhavanaa mai,rachanaa.per ye nirasha kyon.aasha ka daaman mat chodiye.jeevan main ye sab to chalataa rahataa hai.
Dhanya hai Minakshi G
मनोहारी अद्भुत चित्रण सपने का...
नीरज की कविता को आधार बना कर अपने मन के भावों को सुंदरता से ढाला है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
bhut bhut acchi rachna...
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