सपने अपने - अपने


सपने तो थे फूल से , दिल में चुभे शूल से ,
लूट लिए सारे सपने , बागों के बबूल ने |


हम तो बस खड़े - खड़े , बहार देखते रहे |
कारवां निकल गया , हम धुल देखते रहे |

कैसा था ये मंजर , धुप अब थी ढल चुकी |
अब आगे क्या बढ़ते , जिंदगी थी लुट चुकी |

पत्ते - पत्ते झर चुके , शाख जैसे जल गई |
चाह पूरी न हुई , उम्र सारी थी गुजर गई |

गीत मेरे थे  रुक गये , छंद मंद पड़ गये |
साथ के संगी - साथी , धुवां बनके उड़ गये |

आज हम वहीँ खड़े , थोड़े से झुके - झुके |
उम्र के पढाव पर , उतार देखते रहे |

कारवां चला गया , हम राख देखते रहे |
धूल में उड़ता हुआ , बस गुबार देखते रहे |
 

8 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कारवां चला गया , हम राख देखते रहे |
धूल में उड़ता हुआ , गुबार देखते रहे |

बहुत मनमोहक लिखा है आपने.

सादर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपके ब्लॉग में पढ़ कमेंट दे चुके हैं।

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

achchha likha hai aapne

prerna argal ने कहा…

|गीत मेरे रुक गये , छंद मंद पड़ गये |साथ के संगी - साथी , धुवां बनके उड़ गये |आज हम वहीँ खड़े , थोड़े से झुके - झुके |उम्र के पढाव पर , उतार देखते रहे |कारवां चला गया , हम राख देखते रहे |धूल में उड़ता हुआ , गुबार देखते रहे |&nbs...bahut hi bhavanaa mai,rachanaa.per ye nirasha kyon.aasha ka daaman mat chodiye.jeevan main ye sab to chalataa rahataa hai.

बेनामी ने कहा…

Dhanya hai Minakshi G

संजय भास्‍कर ने कहा…

मनोहारी अद्भुत चित्रण सपने का...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नीरज की कविता को आधार बना कर अपने मन के भावों को सुंदरता से ढाला है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति

विभूति" ने कहा…

bhut bhut acchi rachna...