प्यार का मतलब ...
अगर दान जैसा होता |
तो इंसा खुद से इतना
परेशान न होता |
प्रकृति और इंसा के प्यार में
बस यही एक है अंतर |
उसके अन्दर लेने की
चाहत जो नहीं है |
हम जानते हैं इंसा सिर्फ
भावनाओं में है जीता |
कुछ देके लेने की
चाहत है करता |
यही उसके दुःख का
कारण है बनता |
अगर ऐसा न होता तो वो
कभी तन्हा न होता |
सब उसके होते और
वो सबका होता |
पाने की चाहत में
वो इंसां को बांधना है चाहता |
न बंधने की चाहत में
वो उसको खोता है जाता |
प्यार तो पहले ही से
बंधने से है डरता |
न बंधने की चाहत में
वो इंसा से दूर - दूर होता |
इसी भ्रम में इंसा
अपना जीवन बिताता |
बिना कुछ पाए ही
दुनिया से है जाता |
15 टिप्पणियां:
पाने की चाहत में वो इंसां को बांधना है चाहता | न बंधने की चाहत में वो उसको खोता है जाता |
संवेदनशील रचना ...
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
इसी भ्रम में इंसा
अपना जीवन बिताता |
बिना कुछ पाए ही
दुनिया से है जाता |
bahut bhavpoorn rachna .badhai
apne bilkul sahi kaha hai,
ये अपेक्षाएं ही तो इंसान को दुखी करती हैं ...अच्छी रचना
मीनाक्षी जी आपने तो गजब ढहा दिया है
प्यार का मतलब सही सही समझा दिया है
प्यार का मतलब नहीं है कुछ दे कर लेना
त्याग और समर्पण ही है जीवन का गहना
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.
"पाने की चाहत में
वो इंसां को बांधना है चाहता |
न बंधने की चाहत में
वो उसको खोता है जाता |
प्यार तो पहले ही से
बंधने से है डरता |
न बंधने की चाहत में
वो इंसा से दूर - दूर होता |
इसी भ्रम में इंसा
अपना जीवन बिताता |
बिना कुछ पाए ही
दुनिया से है जाता |"
बहुत ही सुंदर रचना.........
कुछ अलग सी
कुछ तेरे
और कुछ मेरे जैसी..
आभार....!!
कुछ देके लेने की
चाहत है करता |
यही उसके दुःख का
कारण है बनता |
बहुत ही सुन्दर बात कही है मीनाक्षी जी आपने
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ
बधाई
avinash001.blogspot.com
paane aur khone ke pare jo hai wahi pyar hai...bahut badhiya se samjhaya aapne meenakshi ji...dhanyavaad.
उत्तम रचना
लेकर देने की रीत पुरानी है और दुख का कारण भी...
बहुत अच्छी...
बहुत खूब रचना मीनाक्षी जी
प्यार का मतलब ...
अगर दान जैसा होता
तो इंसा खुद से इतना परेशान न होता
गर दान का मूल भी इंसान समझ पाता
तो इंसान खुद से इतना परेशान न होता
दान भी कहाँ वो आज तक समझ पाया है |
हर दान मैं भी वो अपनी स्वार्थ कहाँ भुला पाया है?
हर बंद दाहिने हथेली के ऐवज में
बाये हथेली का न खोलना कहाँ वो भूल पाया है?
बहुत खूब रचना मीनाक्षी जी
keep writing
sanjay
http://chaupal-ashu.blogspot.com/
जब कुछ अपना है ही नहीं तब काहे का मोह।
bhut bhaavpur rachna..
प्रकृति और इंसा के प्यार में बस यही एक है अंतर | उसके अन्दर लेने की चाहत जो नहीं है |
सुन्दर नज़्म ज़िन्दगी की तल्ख़ सच्चाई को बयाँ करने में आपकी नज़्म पूरी तरह कामयाब है
मुबारकबाद आपको इस खुबसूरत तखलीक के लिए वाह
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