खबर ही न हुई


दुनिया कब सिमट गई
खबर ही न हुई |
वो घर के बड़े - बड़े आँगन ,
जहाँ बैठ कर सब
अपनी कहते और सुनते थे
किसी को मनाते
और खफा हो जाते थे |
उसने कब छोटा सा
रूप ले लिया
पता ही न चला |

आँगन पर वो तुलसी का पौधा
बच्चों का चारों तरफ
भागते रहना |
सहेलियों की वो प्यारी बातें
आम की चटनी और आचार
की सदा बहारें
कब सिमट गई
पता ही न चला |

पडोसी का एक दूजे के
लिए वो प्यार ?
एक दूजे के सुख - दुःख
में शरीक होते वो लोग |
रिश्ते - नातों से मिलने के
वो खूबसूरत पल |
कहाँ खो गया
पता ही न चला |

करुणा , दया और सत्कार
जीत की हार
आत्मा का वो विस्तार
कहाँ सिमटता चला गया
पता ही चला |
वो आँगन कहाँ खो गया
पता ही न चला |



18 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

मानों जीवन में नया क्‍या कब खिल गया, खबर ही न हुई.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर भाव है, जीवन की असल सच्चाई

दुनिया कब सिमट गई
खबर ही न हुई |
वो घर के बड़े - बड़े आँगन ,
जहाँ बैठ कर सब
अपनी कहते और सुनते थे
किसी को मनाते
और खफा हो जाते थे |
उसने कब छोटा सा
रूप ले लिया
पता ही न चला |

बहुत बढिया

सदा ने कहा…

बिल्‍कुल सही कहा है ...दुनिया क‍ब सिमट गई ...कुछ भी खबर नहीं ..बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दिनांक गलत होने के कारण फिर से सूचित कर रही हूँ -


आज 22- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________

Dr Varsha Singh ने कहा…

आँगन पर वो तुलसी का पौधा
बच्चों का चारों तरफ
भागते रहना |
सहेलियों की वो प्यारी बातें
आम की चटनी और आचार
की सदा बहारें
कब सिमट गई
पता ही न चला |

जीवन की मिठास को बड़ी बारीकी से व्याख्यायित किया है आपने।

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

आँगन पर वो तुलसी का पौधा
बच्चों का चारों तरफ
भागते रहना |
सहेलियों की वो प्यारी बातें
आम की चटनी और आचार
की सदा बहारें
कब सिमट गई
पता ही न चला |

बहुत सुंदर...

S.M.Masoom ने कहा…

आप कि इस कविता ने मेरे दिल को छु सा लिया और इसका ज़िक्र चर्चा मंच करने का फैसला लिया . .
.
दुनिया कब सिमट गई
खबर ही न हुई |
वो घर के बड़े - बड़े आँगन ,
जहाँ बैठ कर सब
अपनी कहते और सुनते थे
किसी को मनाते
और खफा हो जाते थे |
उसने कब छोटा सा

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा लिखा है..क्या कहुं ? आज का सच , जीवन का सच , हमारा सच..

संध्या शर्मा ने कहा…

वो आँगन कहाँ खो गया
पता ही न चला |

बिल्‍कुल सही कहा है ...दुनिया क‍ब सिमट गई पता ही न चला..

Minakshi Pant ने कहा…

आप सभी दोस्तों की मैं बहुत आभारी हूँ की आप मुझे समय - समय में आकार प्रोत्साहित करते हैं |

विभूति" ने कहा…

सच में दुनिया सिमट गयी है....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

वह स्वर्ण-युग था.उसकी स्मृतियाँ ही कुछ पल का सुख दे सकती हैं.वरना सुविधाओं की भीड़ में सुख तो गुम चुका है.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर भाव।

Roshi ने कहा…

ek ek shabd sahi likha hai aapne............

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज के यथार्थ को कहती सटीक अभिव्यक्ति

Sunil Kumar ने कहा…

सच में दुनिया सिमट गयी है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कहीं कुछ फैलता है, कहीं कुछ सिकुड़ता है।

Unknown ने कहा…

आम की चटनी और आचार
की सदा बहारें
कब सिमट गई
पता ही न चला |

सच्चाई, सुंदर भाव