देखो सूरज फिर आज कंगाल हुआ |
चाँद - तारों में भरकर अपना प्यार
देखो वो आज फिर से मालामाल हुआ |
जिक्र छीडा जब भी जग में उसका
शाम को आँगन सारा लाल हुआ |
सुबह छज्जे में आकार जो ढहरा था
शाम को मिलना उसका मुहाल हुआ |
उम्र तो ठहर गई उस चोबारे में
पर उसका तो जीवन भर साथ हुआ |
तुम तो आते थे दिन , साल , महीने में
पर उसका दीदार तो हर बार हुआ |
कल तक जिसको न समझ पाए थे
आज सारे सवालों का वही जवाब हुआ |
12 टिप्पणियां:
बेहतरीन, अहा।
vaah ...........bahut hi umda prastuti.
बहुत सुंदर प्रस्तुति..
kya kahoon, isa pyari se kavita ne sooraj ke roopon ko charon taraph bikher diya.
wah jee! mil gaya aapko saare sawalo ka jabab:D
bahut khub!! aapki lekhni ka jabab nahi!
क्या कहने, बहुत बढिया
bhaut hi sunder....
खूबसूरत रचना
जिक्र छिड़ा जब भी जग में उसका
शाम को आँगन सारा लाल हुआ |
सुबह छज्जे में आकार जो ढहरा था
शाम को मिलना उसका मुहाल हुआ |
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ....
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
बहुत बहुत बहुत सुन्दर .....अभिव्यक्ति मीनाक्षी जी
Aapko aksar blog ki galiyon mein vichararte huye dekha hai... aaj vichar huaa jo aapki gali vicharan karun.. Badi achhi rachna karti hain aap.. Badhai..
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