बिन पानी मछली , तडपती है जैसे |
भूख से तडपती है वैसे , रूहे गरीबी |
इंसा की , इंसानियत को परखकर ,
डूबती नाव की आस , लगाती है गरीबी |
सागर में ज्वार जैसे , हिलोरे है लेता |
वैसे पेट में आग , लगाती है गरीबी |
जुबाँ तो हरदम उसके , साथ है रहती |
पर जुबाँ से कुछ न , कह पाती गरीबी |
पेट की आग जब , तन - मन को जलाती |
बस आसुओं का सैलाब , बहाती है गरीबी |
बंजर धरा को देख , आसमां जब है बरसता |
तब एक सुकून दिल में , ले आती गरीबी |
सागर में बढती नैया को , देख - देखकर ,
खुद में एक विश्वास , जगाती है गरीबी |
सारे प्रयासों को , विफल होता देखकर ,
उसे ही किस्मत ... कह देती गरीबी |
जिंदगी में अपना नाम , दर्ज करवाकर ,
अपने सफर का अंत , कर देती गरीबी |
19 टिप्पणियां:
संवेदनशील रचना ...
इसलिए तो गरीबी को अभिशाप कहा जाता है
Sunder rachna aaj ke daur par bilkul sateek baithti.
Aabhaar . . . !!
च् च् च्
गरीबी सबसे बड़ा शाप है, इससे निकालना ही होगा सबको।
गरीबी जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है, उसके लिए मर्मस्पर्शी रचना कर उसके दर्द को उकेरा है. बहुत सुंदर रचना.
गरीबी का बहुत ही मार्मिक चित्र।
सादर
कल 09/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आपकी कविता मे कठोर सच है और मार्मिकता है और आपके मन की करुणा का आभास भी दिख रहा है...
जिंदगी में अपना नाम , दर्ज करवाकर ,
अपने सफर का अंत , कर देती गरीबी |
ek ek shabd sacchayi bayaan kar raha hai.
sateek abhivyakti.
भावपूर्ण कचोटती हुई प्रस्तुति.
मीनाक्षी जी आप मेरे ब्लॉग की नियमित पाठक है.
आपके आने का मैं इंतजार करता रहता हूँ जी.
गरीबी के सत्य को दर्शाती बहुत ही मार्मिक एवं संवेदनशील रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
गरीबी बहुत बार अभिशाप है ............सुंदर रचना
Marmik prastuti...
www.poeticprakash.com
haaye gareebi
सच कहा है गरीबी एक अभिशाप बन के रह गई है समाज में आज ...
हकीकत बयां करती प्रस्तुति ।
sateek abhivyakti.
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