सोनिया गाँधी

                                                                            राजनीती से तो  हमारा दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं है पर दिल ने चाहा की किसी एसे व्यक्तित्व पर लिखा जाये जो बड़ी हस्ती से तालुख रखता हो , फिर क्या था जहन में सोनिया जी का नाम आ गया और हमने भी कलम को गति देते हुए उनके सकारात्मक पहलुओ को लिखना शुरू कर दिया ! हमारा उदेश्य तो उनके राजनीती पहलुओ को न देखते हुए नारी के सुंदर व्यक्तित्व को उजागर करना था ! क्युकी राजनीती तो इन्सान के अपने असली पहचान को ही ख़तम कर देती है और रह जाता है सिर्फ बाहरी आवरण जिसमे किसी भी तरह के प्रहार का कोई फरक ही महसूस नहीं होता और वो इसका आदि हो जाता है जिसमे से एहसास शब्द का अर्थ ही ग़ुम हो जाता है ! राजनीति इन्सान को इन्सान की हकीकत से दूर ले जाने का काम बखूबी करती है तभी तो वो उस दर्द के करीब नहीं पहुँच पाती ! चलो छोड़ो हमारा तो सिर्फ इतना कहना था की हमारी भी सोनिया जी के साथ बिताये कुच्छ यादो के पल हैं जो हमने उनके साथ तब बांटे थे जब वो हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री राजीव गाँधी जी के साथ बॉम्बे में अपना उत्सव...... के दोरान  पधारी थी ! बस उन्ही को जेहन में रख कर आज उनके बारे में लिखने को दिल कर गया !
                                                                               सोनिया जी का जन्म ९ दिसम्बर १९४७ को इटली के छोटे से गाँव ओर्बस्सानो में हुआ था मैडम परिवार की होने पश्चात् भी उनमे सस्कारो की कोई कमी नहीं दिखती !जब वो १८ साल की हुई तो उनके पिता ने उन्हें अंग्रेजी पड़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया ! वहां वो ३ साल रही इसी दोरान १९६५ में इनकी मुलाकात एक खुबसूरत जवान लड़के से हुई ! दोनों में प्यार बढता गया और इसे शादी का रूप मिल गया जब सोनिया जी ने पहली बार अपनी सास का परिचय  भारत की इतनी महान हस्तियों में पाया तो उनसे मिलने  से वो घबराती रही पर धीरे धीरे इनकी मुलाकात ने दोस्ती का रूप ले लिया ! १९६८ में राजीव जी व् सोनिया जी शादी संपन हुई ! सोनिया जी ने बिना कोई आपति के हिन्दुस्तानी रीती - रिवाजो को बखूबी अपना लिया और धीरे - धीरे हिंदी भाषा को भी सिखने लगी ! अपनी जिंदगी में उन्होंने बहुत उतर चड़ाव देखे  हम उनकी हिम्मत की दाद देते हैं , किसी दुसरे देश से आकर अपना इतना मजबूत परिचय  बनाना किसी भी नारी के लिए फ़क्र की ही तो बात है ! अपने परिवार में होने वाली एक के बाद एक मोत को अपनी आखों से देखना ये बहुत बड़ा दर्द  ही तो है जिसे अपने अन्दर दबा कर आने वाली विपतियो का सामना करने के लिए फिर से कमर कसना और  उसके बाद भी अपने होंसले को बनाये रखना और विपति का पूरी तरह सामना करना !
                                                                                                      अपने पति श्री राजीव गाँधी की मृत्यु के ६ साल बाद तक सोनिया जी ने अपनी बच्चो  की परवरिश में बिताये और फिर १९९४ में अपने पाति के नाम से किताब छाप कर अपने होने का एहसास दिला अपनी चुप्पी  को फिर से तोडना चाहा ! राजीव जी की मृत्यु के बाद जब कांग्रेस पार्टी कमजोर पड़ गई  तो उसको मजबूती से खड़े करने का काम भी सोनिया जी ने बखूबी से किया ! शायद घर में पहले से बसे राजनीति माहोल का ही असर था जो वो इसे बखूबी निभा भी पाई ! इसे  इंदिरा जी की कला और राजीव जी का साथ भी कहे तो गलत न होगा  ! राजनीती की अधिक जानकारी न होने पर भी उन्होंने अपनी मिट्ठी  आवाज़ के जादू और हिंदी के थोड़े बहुत ज्ञान  के चलते हिंदुस्तान की जनता पर अपनी छाप छोड़ ही दी ! इस तरह जनता से अपने लिए  प्यार बटोरने में  सफल भी हुई  ! इतना प्यार मिलने के बाद भी इंसानियत हार गई और कुच्छ लोगो ने उन्हें इस समर्पण को नज़र अंदाज़ करते हुए दुसरे देश की होने का कहा ...........उनके  इस समर्पण को जिससे पूरी  जिंदगी इस देश को अपना कहने का हक भी छीन लिया ! पर उन्होंने इस बात को भी बखूबी से निभाया और उन सबका मन रखते हुए वो पिच्छे हट गई और अपने देश को आगे ले जाने में पूरा सहयोग  देती रही और आज भी दे रही हैं हमे ये देख क़र बहुत  ख़ुशी होती है की उन्होंने एक विदेशी हो कर भी अपने सभी फ़र्ज़ को बखूबी से निभाया फिर चाहे वो पत्नी बनकर हो , बहु बनकर , माँ बनकर और या फिर देश का एक अच्छा नागरिक बनकर ! अगर हम उन्हें राजनीती के नज़रिए से न देख कर एक एसी महिला के रूप में देखे जिसके जीवन में कई उतार - चड़ाव आये पर उसने हिम्मत से उनका सामना किया तो हमे सोनिया जी पर फ़क्र होता है ! आज भी वो राजनीती में अपनी सक्रीय भूमिका बखूबी निभा रही हैं और अपने देश के साथ - साथ अपने दोनों बच्चो  का साथ बखूबी निभा रही हैं ! आज फिर हम एक और नारी के अध्याय का अंत करते हैं !
                                ये राजनीती है दोस्तों सोचता है  क्या !
                                     आगे - आगे देखिये होता है क्या ! !      

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

काणे को काणा नही कहना चाहिये , क्यो कि किचङ मे पत्थर फेकने से अपना ही चहरा गन्दा होता है